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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

गुनहगार ख़ुश रहे !

इस  दौर  का  अमल  है  के:  सरकार  ख़ुश  रहे
अल्लाह    ख़ुश   रहे  न   रहे    ज़ार    ख़ुश  रहे

मरती   रहे     अवाम     अगर    भूख   से   मरे
हाकिम  है   फ़िक्रमंद    के:    बाज़ार  ख़ुश  रहे

इस  दौरे-सियासत    के    क़वायद  कमाल  हैं
कट  जाएं  सब  सिपाही  प'  सरदार  ख़ुश  रहे

एहसान   कीजिए   के:  चले  आएं    ख़्वाब  में
क्यूं  कर  न  कभी   आपका  बीमार  ख़ुश  रहे

करता  है   बंदगी  में   वफ़ा  की   अगर  उमीद
तेरा   भी   फ़र्ज़  है   के:   तलबगार    ख़ुश  रहे

क्या  तब  भी    इन्क़िलाब    ज़रूरी  नहीं  यहां
मासूम   क़ैद    में    हों    गुनहगार     ख़ुश  रहे

अब  कीजिए  अहद  के:  लौट  आएं  वही  दिन
जब  मुफ़लिसो-मज़ूर  का  घर-बार  ख़ुश  रहे  !

                                                                  ( 2013 )

                                                            -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: अमल: आचरण; ज़ार: रूस के निर्दयी, जन-विरोधी शासक जो 1917 की  जन-क्रांति में परास्त हुए; 
अवाम: जनता; हाकिम: शासक; फ़िक्रमंद: चिंतित; दौरे-सियासत: राजनैतिक युग;  क़वायद: नियम (बहु.);
बंदगी: भक्ति; वफ़ा: आस्था, ईमानदारी; फ़र्ज़: कर्त्तव्य; तलबगार: आशा रखने वाला; इन्क़िलाब: क्रान्ति; 
मासूम: निर्दोष; गुनहगार: अपराधी; अहद: संकल्प, प्रतिज्ञा; मुफ़लिसो-मज़ूर: निर्धन और श्रमिक-वर्ग।


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