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शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

जवां-उम्र में कीजे तौबा

जिसे    फ़रेबे -जहां    से    गिला   नहीं  होता
वो:  शख्स  अपने-आप  से  ख़फ़ा  नहीं  होता

देख   नासेह     गरेबां  में    झांक   कर   अपने
वक़्त  मुंसिफ़  है  किसी  का  सगा  नहीं  होता

हर   गुनहगार     ज़माने  से    मुंह  छुपाता  है
जब  तलक  आग  न  हो  तो  धुंवा  नहीं  होता

शोर    करता  है     वही    दूर  रह  के  मैदां  से
जिसमें   लड़ने   का    कोई   माद्दा  नहीं  होता

झूठ-ओ-मक्र  जो  दिल  में  छुपाए  रखता  हो
ऐसे   इंसान   के    हक़  में    ख़ुदा  नहीं  होता

ये:  सियासत  है  यहां  काम  क्या  शरीफ़ों  का
दूध  का    कोई    यहां  पर  धुला  नहीं  होता

बात  तब  है  के:  जवां-उम्र  में   कीजे  तौबा
मौत  के  बाद    कोई    रास्ता     नहीं  होता

अहले-ईमां  ही   सचाई  की   क़द्र  करते  हैं
बे-ईमानों  का  कोई  फ़लसफ़ा  नहीं  होता !

                                                               ( 2013 )

                                                        -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: फ़रेबे -जहां: दुनिया के छल; गिला: शिकायत; नासेह: धार्मिक शिक्षा देने वाला; मुंसिफ़: न्यायकर्त्ता; 
गुनहगार: अपराधी; माद्दा: शक्ति; मक्र: छद्म; अहले-ईमां: ईमानदार लोग; फ़लसफ़ा: दर्शन, सिद्धांत।

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